नई दिल्ली: मानव सभ्यता के विकास की रफ्तार जितनी तेज़ हुई है, प्रकृति की स्थिरता उतनी ही कमजोर पड़ी है। इसका सबसे जीवंत उदाहरण है अरावली पर्वत (Aravali Parvat) श्रृंखला, जिसे भूवैज्ञानिक दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में गिनते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, अरावली की आयु लगभग 200 करोड़ वर्ष है। जब धरती पर जीवन के शुरुआती संकेत भी स्पष्ट नहीं थे, तब यह पर्वतमाला अस्तित्व में आ चुकी थी।
800 किलोमीटर लंबी जीवन-रेखा अरावली पर्वतमाला
अरावली पर्वतमाला (Aravali Parvat) लगभग 800 किलोमीटर तक फैली हुई है, जो गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर से होकर गुजरती है। यह क्षेत्र उत्तर-पश्चिम भारत के लिए एक प्राकृतिक ढाल का काम करता है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक Aravali Parvat:-
- थार रेगिस्तान को पूर्वी भारत की ओर फैलने से रोकता है
- मानसून की नमी को थामकर वर्षा चक्र को संतुलित करता है
- भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) में अहम भूमिका निभाता है
- धूल भरी आँधियों और अत्यधिक तापमान को नियंत्रित करता है
भूजल संकट और Aravali Parvat
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा के कई हिस्सों में भूजल स्तर हर साल औसतन 1 से 2 मीटर तक गिर रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अरावली क्षेत्र में अंधाधुंध खनन और पहाड़ियों की कटाई इसका बड़ा कारण है, क्योंकि यही क्षेत्र प्राकृतिक जल संग्रहण और रिसाव का मुख्य ज़ोन है।
‘छोटे पहाड़’ और बड़ी पर्यावरणीय भूल
हाल के वर्षों में यह तर्क दिया गया कि 100 मीटर से कम ऊँचाई वाले पहाड़ों को संरक्षित श्रेणी से बाहर रखा जा सकता है। पर्यावरणविद इसे खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार, पहाड़ की पारिस्थितिक भूमिका उसकी ऊँचाई से नहीं, बल्कि उसकी भौगोलिक स्थिति और संरचना से तय होती है।
क्या कहते हैं आंकड़े
- हरियाणा और राजस्थान के अरावली क्षेत्र में हज़ारों हेक्टेयर भूमि खनन और रियल एस्टेट गतिविधियों से प्रभावित हो चुकी है
- दिल्ली-एनसीआर में धूल प्रदूषण (Particulate Matter) का एक बड़ा स्रोत अरावली का क्षरण भी है
- कई अध्ययन बताते हैं कि अरावली के कमजोर होने से हीटवेव की तीव्रता और अवधि में वृद्धि हुई है
विकास बनाम अस्तित्व
संयुक्त राष्ट्र और पर्यावरण विशेषज्ञ बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि अगर विकास प्रकृति की कीमत पर होगा, तो वह टिकाऊ नहीं रह पाएगा। अरावली का नुकसान सिर्फ पहाड़ों का नुकसान नहीं, बल्कि पानी, हवा, जैव विविधता और अंततः मानव जीवन की गुणवत्ता पर सीधा असर है।
अरावली को लेकर आने वाली पीढ़ियों का सवाल
आज अरावली (Aravali Parvat) खामोशी से सवाल कर रहा है- “अगर मेरी ऊँचाई कम है, तो क्या मेरी ज़रूरत भी कम हो गई?” पर्यावरणविद चेतावनी देते हैं कि अगर अरावली का संरक्षण नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमसे पूछेंगी- “जिस पहाड़ ने तुम्हें रेगिस्तान से बचाया, तुमने उसे क्यों नहीं बचाया?”
कुल मिलाकर अरावली को बचाना सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा का सवाल है। विकास की सही परिभाषा वही है, जो प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़े। अन्यथा यह विकास नहीं, बल्कि धीरे-धीरे किया गया विनाश होगा।